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लेखनी प्रतियोगिता -28-Jul-2023 "शेर"

       "शेर"

देखा है कभी पत्थरों को रोते सिसकते हुए । 
पर देखा है हमने उन्हें कभी कभी हँसते हुए।। 

खिल उठते हैं कभी कभी फूल उनकी दरारों से। 
शायद तमन्ना कोई मचल रही थी उनके शरारो से।। 

पत्थरों को किसी ने आज तक समझा ही कहाँ। 
चाहा जैसे तराशा है रज़ा क्या उसकी ये जाना कहाँ।। 

पत्थरों का ज़िक्र ना पत्थर बन के कीजिए। 
पावन बना के ख़ुदा का रूप इनको दीजिए।। 

पत्थर ने पत्थर पे ऐसा किया जोर का प्रहार। 
चकनाचूर हो गए दोनों मिलकर एक साथ।। 

मधु गुप्ता "अपराजिता"


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4 Comments

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति

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बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏

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Reena yadav

28-Jul-2023 11:07 PM

👍👍

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Thank you so much🙏🙏

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